
नीतीश कुमार के पर कतरने के बाद पैरों में बेड़ियां डालने जैसा है अमित शाह का एक्शन प्लान।।। अभी खरमास शुरू हो रहा है और महीने भर बाद खिचड़ी का मौका आएगा. खिचड़ी तो देश भर में

मनाते हैं, लेकिन बिहार की बात ही और है. दलगत राजनीति से परे नेताओं असली रिश्ते खिचड़ी पर चूड़ा-दही खाने के वक्त ही नजर आते हैं – और अगर कहीं चूड़ा-दही डिप्लोमेसी चल जाये तो वो बोनस माना जाता है. बिहार चुनाव 2020 के नतीजे तो बीजेपी के लिए भर पेट चूड़ा-दही खाने जैसे ही रहे, लेकिन लगता नहीं कि पार्टी का मन अभी भरा है. जब तक बिहार के लोग पूछ पूछ कर और ‘थोड़ा और थोड़ा और’ बोल बोल कर खिलाते नहीं – संतुष्टि तो मिलने से रही. वैसे भी सत्ता की भूख और पेट की भूख में कोई मुकाबला तो हो नहीं सकता – जब तक काया तृप्त न हो माया तो लगी ही रहती है. विधानसभा चुनावों में अपना जलवा दिखाने के बाद बीजेपी नेतृत्व ने बिहार के नेताओं और कार्यकर्ताओं आने वाले पंचायत चुनावों की तैयारी में झोंक दिया है. बीजेपी तो अमित शाह के P2P मॉडल पर पहले से ही काम कर रही थी, हैदराबाद और राजस्थान के नतीजों से पार्टी का जोश हाई हो चुका है. दरअसल,

अमित शाह के बीजेपी को लेकर स्वर्णिम काल के पैरामीटर को ही राजनीति में P2P मॉडल कहते हैं – बीजेपी की राजनीतिक में P2P मॉडल मतलब पंचायत से लेकर पार्लियामेंट तक बीजेपी के हाथ में सत्ता समझा जाना चाहिये. बिहार में पंचायत चुनाव भी पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों के आस पास ही होने वाले हैं. मान कर चलना चाहिये कि करीब छह महीने का समय है. समझने वाली बात ये है कि बिहार की राजनीति में पूरी तरह दबदबा कायम करने का ये पंचायत स्तर पर बीजेपी के कब्जे की कोशिश है – खास बात ये है कि बीजेपी जो चाहती है, उसके लिए आधा इंतजाम तो कर चुकी है – आधा बाकी है. अगर नीतीश कुमार ने कोई पेंच नहीं फंसाया तो बीजेपी को आधा सफर पूरा करते देर नहीं लगेगी.जून, 2020 तक बिहार में मौजूदा त्रिस्तरीय पंचायतीराज प्रतिनिधियों का कार्यकाल पूरा हो रहा है. पंचायत चुनाव में हर वोटर एक साथ 6 प्रतिनिधियों का चुनाव करता है. विधानसभा के बाद कोरोना काल में ही बिहार में ये दूसरा चुनाव होने वाला है. राज्य निर्वाचन आयोग ने सभी जिले के प्रशासनिक और पुलिस अधिकारियों से चुनाव की संभावित तारीखों को लेकर सुझाव मांगा है और इसके लिए दो हफ्ते की मोहलत दी गयी है. मान कर चलना होगा उसके बाद चुनाव को लेकर विधानसभा की तरह ही पहले गाइडलाइन और फिर मतदान की तारीखें आएंगी. बीजेपी नेतृत्व की तरफ से पंचायत चुनाव के लिए बिहार के नेताओं के साथ साथ बूथ कमेटियों और शक्ति केंद्र प्रभारियों को नये सिरे से काम पर लगा दिया गया है.सुनने में ये भी आ रहा है कि बिहार में भी बीजेपी हैदराबाद नगर निगम की तर्ज पर भी चुनावी तैयारियों में जुट गयी है. मुमकिन है हैदराबाद की तरह ही बीजेपी के बड़े बड़े दिग्गज बिहार में भी रोड शो और चुनाव प्रचार करते देखने को मिलें. बिहार के लोगों के लिए आम चुनाव और विधानसभा चुनाव के तुंरत बाद बिलकुल वैसा ही माहौल देखने को मिल सकता है.बीजेपी चाहती है कि बिहार में भी पंचायतों के चुनाव दलगत आधार पर ही कराये जायें. बीजेपी की ये लंबे समय से मांग रही है. दलगत आधार से आशय पंचायत चुनावों में भी पार्टी लोक सभा और विधानसभा चुनावों की तरह ही उम्मीदवारों को पार्टी सिंबल पर चुनाव लड़ाना चाहती है. अगर ऐसा नहीं होता तो उम्मीदवार निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ते हैं और पार्टियां सिर्फ समर्थन करती हैं.बिहार में फिलहाल ऐसी ही व्यवस्था है और बदलने के लिए नीतीश कुमार सरकार को नियमों में संशोधन करना पड़ेगा. ऐसा संभव हुआ तो बीजेपी की कोशिश होगी कि वो विधानसभा की तरह ही पंचायत स्तर पर भी अपना दबदबा कायम करने की कोशिश करे मतलब, साफ है अब बीजेपी चाहती है कि पंचायतों में भी लोग बीजेपी की तरफ से प्रतिनिधि के तौर पर जाने जायें और विधान सभा की तरह वहां भी पार्टी का दबदबा कायम हो. बीजेपी के दबदबा कायम होने का मतलब आरजेडी नेता तेजस्वी यादव की अगुवाई वाला विपक्षी महागठबंधन और बीजेपी की सहयोगी पार्टी
https://youtu.be/Fnn1cWFvt-U
जेडीयू जिसके नेता मुख्यमंत्री नीतिश कुमार हैं खास बात ये है कि बीजेपी ने कैबिनेट गठन के समय ही पंचायतों पर कब्जे की दिशा में चाल चल दी है जो नीतीश कुमार के लिए नया खतरा बन कर तैयार हो रहा है. बिहार पंचायत चुनावों के लिए एक्शन प्लान अमित शाह विधानसभा चुनाव से पहले ही बना चुके होंगे, ऐसा लगता है. बिहार चुनाव के नतीजे आते ही उसको अमलीजामा पहनाया जाना भी शुरू हो गया.पंचायत चुनावों में मनमाफिक राजनीति हो सके, इसके लिए बीजेपी ने तभी अपनी चाल चल दी जब नीतीश कुमार अपनी कैबिनेट में विभागों का बंटवारा कर रहे थे.