मिथिला विश्विद्यालय में “राष्ट्र निर्माण में नारी की भूमिका महत्वपूर्ण है” इस विषय पर गोष्ठी का आयोजन किया गया। विश्विद्यालय के ही एक छात्र ने मंच संचालक से आग्रह किया कि मुझे भी कुछ बोलने की इच्छा है..लड़के को बोलने दिया गया..जब लड़के ने अपने सम्बोधन भाषण में मधुबनी शेल्टर होम-मुजफ्फरपुर कांड,छात्र संघ नेत्री ऋचा झा की मौत पर विश्विद्यालय प्रशासन की चुप्पी की ज़िक्र करना शुरू किया तो संचालन ने लड़के को मना करते हुए कहा कि से इस तरह की बात इस मंच पर नही होनी चाहिए। कार्यक्रम के बीच ही हंगामा शुरू हो गया दो पक्षों में हाथापाई तक की बात सामने आई है।
अगर लड़के ने महिलाओं के हितों में आवाज़ उठाई है तो मंच संचालक को मना नही करना चाहिए था। साफ़ साबित होता है कि यह गोष्ठी महज एक दिखावा था।
क्यों करते हो ये दिखावे वाली गोष्ठी, महिलाओ को दिल से सम्मान दो,गोष्ठी नही भी करोगे तो चलेगा।
मेरा कुछ सवाल है आपसे ख़ासकर, महिलाओ के लिए गोष्ठी-सेमिनार आयोजित करने वाले पुरुष से..
क्या किसी बस, ट्रेन या सार्वजनिक स्थल पर खड़ी महिला को सीट देने के लिए आप पहल करते हैं, या फिर आप अपनी सीट पर बैठे-बैठे उन्हें परेशान होता देखना पसंद करते हैं ?
क्या आप किसी महिला को उसके अच्छा या बुरा दिखने पर घूर-घूरकर ऊपर से नीचे तक बार-बार देखते हैं, या एक बार नजर देखने के बाद दूसरी बार ऐसा नहीं करते ?
किसी महिला की गलती होने पर आप उससे बदतमीजी से बात करते हैं, या सामान्य तरीके से उसे समझाने का प्रयास करते हैं ?
क्या आप महिलाओं को केवल उसकी देह की दृष्टि से देखते हैं, या फिर उसका अपना कोई व्यक्तित्व और अस्तित्व है इस पर यकीन करते हैं ?
इन सवालों को पढ़ने के बाद आपको एक बार विचार करने की आवश्यकता है, खुद के लिए…कि क्या आप सच में नारी का सम्मान करते हैं।